नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने पिता की संपत्ति पर बेटों के बराबर ही बेटियों को अधिकार का दायरा और बढ़ा दिया है! गुरुवार को दिए एक अहम फैसले के जरिए यह सुनिश्चित किया है!
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अब्दुल नजीर एवं कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह फैसला सुनाया जज ने कहा कि जमीन जायदाद से जुड़े उत्तराधिकार के 1956 से पहले के मामलों में भी बेटियों को बेटों के बराबर ही अधिकार होगा।
अगर किसी जमीन जायदाद के मालिक की मृत्यु वसीयत लिखने से पहले हो गई तो उसके अर्जित संपत्ति उत्तराधिकार के सिद्धांत के तहत उसके संतान को मिलेगी भले वह बेटा हो या बेटी या दोनों ऐसे संपत्ति उत्तरजीविता के नियम के अनुसार मरने वाले के भाइयों या अन्य सगे संबंधियों को स्थानांतरित नहीं होगी!
फिर चाहे वह व्यक्ति अपने जीवन काल में संयुक्त परिवार का सदस्य बना रहा हो सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को बदलते हुए फैसला सुनाया है!इसके तहत बिना वसीयत लिखें ही 1949 में स्वर्गवासी हुए मरपा गोदर की जायदाद उनकी बेटी कुपाई अमल को सौंपने का बंदोबस्त किया है!
जस्टिस कृष्ण मुरारी ने फैसले के साथ टिप्पणी की हमारे तो प्राचीन ग्रंथों में भी महिलाओं को बराबर का उत्तराधिकारी माना गया है चाहे स्मृतियां हो या अन्य ग्रंथ उनमें तमाम ऐसे प्रसंग है जिनमें पत्नी, बेटी महिला उत्तराधिकारी को मान्यता दी गई है!
आगे 2005 में इसमें संशोधन किया गया इसके तहत संयुक्त परिवार में रह रहे पिता की संपत्ति में भी बेटे बेटियों के लिए बराबर का अधिकार सुनिश्चित किया गया 13 अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के अधिकारों को और विस्तारित किया।
अदालत ने उस वक्त स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 के लागू होने के बाद से बेटियों का पिता, दादा, परदादा की स्व-अर्जित संपत्ति में बेटों के बराबर का अधिकार सुनिश्चित है! अब ताजा फैसला में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पक्का कर दिया कि पैतृक संपत्ति में बेटी और बेटों के बराबर के अधिकार 1956 से पहले के मामलों में भी लागू होंगे।
तहलका डॉट न्यूज