May 5, 2024

जयपुर-हाथोज धाम के स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने बसंत पंचमी के पावन पर्व की प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए बताया कि बसंत पंचमी का त्यौहार हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है। उन्होंने बताया कि इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण कर पूजा-अर्चना करती है पूरे साल को 6 मौसमों में बांटा गया है उनमें बसंत लोगों का मनचाहा मौसम होता है।
जब फूलों पर बाहर आ जाती है खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता है। जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगती है और हर तरफ तितलियां मंडराने लगती है। तब बसंत पंचमी का त्यौहार आता है।


स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने बसंत पंचमी की कथा में बताया कि सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने मनुष्य योनि की रचना की परंतु अपने सर्जनों से संतुष्ट नहीं थे। तब उन्होंने विष्णु जी की आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरे हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक व माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती का नाम दिया।


माता सरस्वती को बागेश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।
संगीत की उत्पत्ति करने के कारण संगीत की देवी भी है बसंत पंचमी के दिन इनके जन्म उत्सव के रूप में मनाते हैं।
स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी ने बताया कि बसंत ऋतु में मानव तो क्या पशु पक्षी तक में उल्लास बढ़ने लगता है। वैसे तो पूरा माघ मास ही उत्साह देने वाला होता है पर बसंत पंचमी का पर्व हमारे लिए कुछ खास महत्व रखता है।

प्राचीन काल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती के जन्म दिवस के रूप में माना जाता है। इसलिए इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे ज्ञान वान, विद्या वान होने की कामना की जाती है।
स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने कहा कि बसंत पंचमी के दिन प्रातः उठकर बेसनयुक्त तेल का शरीर पर उबटन करके स्नान करना चाहिए। इसके बाद पीले वस्त्र धारण कर मां शारदे की पूजा करनी चाहिए साथ ही केसर युक्त मीठे चावल अवश्य बनाकर उनका सेवन करना चाहिए।

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