जयपुर: केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली और जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार 24 अगस्त से संस्कृत विश्वविद्यालय में अप्रकाशित पाण्डुलिपीनां परिचयः समीक्षणं च विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरुआत हुई। विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग की ओर से आयोजित इस संगोष्ठी का आज उद्घाटन समारोह आयोजित हुआ।
संगोष्ठी के संयोजक डॉ. शशि कुमार शर्मा ने बताया कि इस संगोष्ठी में संपूर्ण भारत से पधारे विशिष्ट विद्वानो के द्वारा पाण्डुलिपियों का परिचय, प्रकार, आधार, पुष्पिका, केटेलोग, संपादन कला, समीक्षात्मक संपादन की प्रक्रिया इत्यादि विषयों पर विचार और व्याख्यान प्रदान किये जायेंगे।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राम सेवक दुबे ने पाण्डुलिपियो पर शोध करने की आवश्यकता बताते हुए पाण्डुलिपियों को सार्थक रूप में समझकर शोध करना चाहिए। सार्थकता के अभाव में अर्थ का अनर्थ हो जायेगा।
संगोष्ठी में आशीर्वाद प्रदाता के रूप में हाथोज धाम के महामण्डलेश्वर बालमुकुंदाचार्य जी महाराज ने संस्कृत और संस्कृति की अभिवृद्धि में विश्वविद्यालय को बधाई दी। साथ ही संस्कृत की विलुप्त होती पाण्डुलिपियो के संरक्षण तथा उन पर निरन्तर शोध करने के लिए सभी को प्रेरित किया।
इस अवसर पर राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, दिल्ली के निदेशक डाॅ. अनिर्बानदाश ने भी अपने विचार व्यक्त किये। साथ ही डा. रानी दाधीच, डाॅ. दिलीप कुमार राणा, प्रो. जिनेन्द्र जैन, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज आदि विद्वानों ने विचार रखे।
कार्यक्रम का संचालन सहसंयोजिका डाॅ. मधुबाला शर्मा ने किया । सभी का स्वागत समन्वयक डाॅ. राजधर मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डाॅ दयाराम दास ने किया