November 24, 2024
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बिजयनगर- (अनिल सेन)आचार्य श्री हीराचंद जी म. सा. की आज्ञानुवर्तिनी विदुषी महासति “पदमप्रभा जी म. सा. ने फरमाया कि कदम ऐसे चले कि निशान बन जाये, नाम ऐसा कमाईये कि नाम से काम हो जाये, जीवन एसा जीये कि आदर्श बन जाये, लोहा बेचने वाला एक दिन “टाटा” बन जाता है और रबड़ बेचने वाला “बाटा ” बन जाता है हमे भी जीवन को इस प्रकार जीना चाहिये की आईडल (आदर्श) बन जाए।

वर्तमान में क्रियात्मक ‘धर्म अधिक हो रहा है जबकि पहले “भावनात्मक धर्म अधिक होता था, भगवान कहते है हमारा जीवन मात्र, पुद्गलों के परिवर्तन (टाईटल चेन्ज) मे लगा है जबकि स्वभाव में परिवर्तन (भीतर का एक्टर) जरूरी है। हमारा ” स्वभाव” ही दुनिया की सबसे अच्छी व खराब चीज है। हमारी की गई आराधना हमें देवलोक” तक ले जा सकती है मगर आराधक बन कर “मोक्ष पाया जा सकता है हमारा विषय ” अधिकारो की लालसा ” चल रहा है।

भगवान ऋषभदेव के पास 98 पुत्र अपने अधिकारों की रक्षा के लिये गये, तब भगवान् ने फरमाया कि राजेश्वरी सो नरकेश्वरी” इस बात के मर्म को समझ सभी ने दीक्षा ग्रहण कर ली “चक्रवती भरत जी को ६ खण्ड पाने के लिये 7 हजार वर्ष लगे, परन्तु जब समझ आई तो 6 सैकण्ड भी नहीं लगे। जितने भी ऊंचाई पर गये, अधिकारों का त्याग करके दी गये।

रामायण और महाभारत क्यो हुआ यह हम सभी को विदित है अधिकार की लालसा हमे अहंकार की ओर ले जाती है और अहकार हमे घोर अंधकार की ओर ले जाता है।