बिजयनगर:(अनिल सैन) दिगम्बर जैन मुनि सम्बुद्धसागरजी महाराज ने कहा कि व्यक्तियों वस्तुओं और परिस्थियों को बुरा या गलत मानकर जब उनसे दूर भागते है तो समस्या ओर ज्यादा बड़ा रूप धारण कर लेती है। घाटा, गरीबी, बीमारी, टेंशन, झगड़ा आदि अनेक संकटों और समस्याओं को जितना ज्यादा खत्म करने की कोशिश होती है, ये समस्याएं उतनी ही ज्यादा विकराल और भयंकर होती चली जाती है। जिस दिन प्रभु की मर्जी या कर्मों का फल समझकर समस्याओं को स्वीकार कर लेते हैं उसी दिन समस्या खत्म हो जाती है।
जैन जगत के महान आचार्य सुनीलसागरजी के शिष्य मुनिश्री सम्बुद्धसागरजी ने बिजयनगर में मंगल प्रवेश के दौरान उक्त उद्गार प्रकट किए।
उल्लेखनीय है कि 20 वर्षों पहले भी मुनिश्री बिजयनगर पधारे थे। उस समय आप क्रांतिकारी राष्ट्रसंत मुनिश्री तरुणसागरजी के संघ में ब्रम्हचारी शैलेन्द्र भैया के रूप में थे। जैन मुनि ने श्रोताओं को हंसा-हंसाकर लोटपोट करते हुए कहा कि हरेक समस्या की जड़ खुद में ही होती है। जिस तरह से गंदगी मक्खी को आकर्षित करती है उसी प्रकार हमारे विश्वास और विचार समस्याओं को आकर्षित करते हैं, उत्पन्न करते हैं। विश्वास और विचार ही हरेक कर्म की जड़ है और हमारे किए कर्म ही दुख दर्दों का महासागर पैदा करते हैं। विचारों में, चिंतन के बदलाव ही सफलता और समृद्धि की मास्टर की है।