ज्ञान चन्द/अजीतगढ़ निकटवर्ती ग्राम झाड़ली में शुक्रवार को महाराव शेखाजी की पांचवी पीढ़ी के वंशज गोवर्धनदास की जयंती का भव्य आयोजन हनुमान सिंह झाड़ली की अध्यक्षता एवँ भगवान सिंह नरुका के मुख्य आतिथ्य में किया गया।समाजसेवी नरपत सिंह झाड़ली ने बताया सर्वप्रथम झाड़ली ग्राम में स्थित मां ओमकंवर शक्ति मन्दिर में पूर्वज गोवर्धनदास की पूजा अर्चना की गयी उसके बाद राजपूत समाज के सैकड़ों लोग पारम्परिक वेशभूषा एवँ हाथों में केसरिया ध्वज लिए हुये भारी लवाजमे के साथ घोड़ो,दुपहिया,चौपहिया वाहनों सहित पैदल गांव के मुख्य बाजार होते हुए बड़ा दरवाजा तक भव्य विशाल शोभायात्रा निकाली गई शोभायात्रा दोपहर दो बजे बड़ा दरवाजा पहुँची जहाँ मुख्य कार्यक्रम का आयोजन हुआ।
कार्यक्रम को रिटायर्ड एडिशनल एसपी देवी सिंह नरुका, रिटायर्ड आरएएस राजेन्द्र सिंह,विक्रम सिंह झाड़ली,विजेंद्र सिंह झाड़ली सहित दर्जनों वक्ताओं ने सम्बोधित करते हुए समाज विकास की बात की साथ ही उपस्थित लोगों को समाज हित मे कार्य करने के लिए प्रेरित किया।इस अवसर पर राजपूत समाज की विभिन्न प्रतिभाओं सहित बिना दहेज के शादी करने वाले,सरकारी नोकरी में सफलता प्राप्त करने वाले,समाजहित में कार्य करने वाले,सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होने वाले एवं 10 वी ओर 12 वीं में 85% या इससे अधिक अंक वाले प्रतिभाओं को सर्टिफिकेट मय नगद राशि से लोगो को सम्मानित किया गया। मंच संचालन धर्मेंद्र सिंह शेखावत एवँ किशन सिंह शेखावत ने किया।
कार्यक्रम के समापन पर राजपूत समाज के अध्यक्ष झब्बर सिंह ने उपस्थित सभी लोगो का आभार प्रकट किया।इस अवसर पर आसपास के गाँवो के राजपूत समाज के सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।*शानदार रहा है गोवर्धनदास का इतिहास**गोवर्धनदास शेखावाटी के संस्थापक महाराव शेखाजी की पाँचवी पीढ़ी के वंशज थे,इनके पिताजी का नाम हरिदास था, ये सात भाइयों में अपने पिता की तीसरे नम्बर की संतान एवँ राव गोपाल के पौत्र थे। राव गोपाल को भाईबट में झाड़ली सहित पांच गाँवो का ठिकाना मिला था। 1715 में झाड़ली गांव भाईबट में अपने पिता हरिदास से गोवर्धन दास को मिला था। गोवर्धन दास खंडेला राजा के यहाँ सेनापति के पद पर पदासीन थे। उस समय मौके का फायदा उठाकर तंवर राजपूतों ने झाड़ली पर कब्जा कर लिया। अपने भाईयों के सहयोग से गोवर्धन दास ने 1715 में तंवर राजपूतों से झाड़ली पुनः प्राप्त की। इन्होंने झाड़ली में गढ़ी का निर्माण करवाया जिसे आज बड़ा दरवाजा कहते हैं, इन्होंने गांव में बुर्ज,कुवें, बावड़ी सहित गोपीनाथ जी के मंदिर का निर्माण करवाया।