राजस्थान की समृद्ध परंपराओं में शुद्ध खान-पान का शुरू से बोलबाला रहा है. इसी कड़ी में खाने-पीने के शहर भीलवाड़ा मैं भी खाने-पीने के शौकीन लोगों की कोई कमी नहीं है. भीलवाड़ा शहर में ऐसे कई स्थल हैं, जो अपने नाम से ही विशेष कार्य के लिए जाने जाते हैं. इसी शृंखला में भीलवाड़ा में एक स्थान है “हरी भाई कचौरी वाला”, जिनका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है.
भीलवाड़ा में मशहूर (हरी भाई कचौरी वाला)
दही कचौरी और चाय से बनाई अपनी पहचान
इनका नाम ही सब कुछ बयां कर देता है. जो चीज इन्हे विशिष्ट और प्रसिद्ध बनातीं है. वो है यहाँ के व्यंजन, यहां का स्वाद
भीलवाड़ा में कचौरी, समोसे दबाकर खाना यहां का खास ब्रेकफास्ट माना जाता है.एक बार सुबह इसे खा लिया जाये तो दोपहर तक आपको भूख कम लगती है. यूँ तो कचौरी,समोसे की दुकानें भीलवाड़ा के हर कोने में मिल जाती है, मगर भीलवाड़ा के बस स्टैण्ड के पास (हरी भाई कचौरी वाला) के स्वाद और गुणवत्ता के मामले लाजवाब है.इसका अंदाजा आप वहा लगने वाली लोगो की भीड़ देख के लगा सकते है.
अगर आप स्ट्रीट फूड दही कचौरी- समोसा खाने के शौकीन हैं तो आप भीलवाड़ा के किसी भी छोर पर अच्छी कचौरी समोसे की दुकान के बारे में बात करेंगे तो वह आपको पलभर में हरिभाई कचौरी वालों का नाम और पता बता देगा. हरिभाई कचौरी भीलवाड़ा में खाने-पीने के मामले में मशहूर नाम है.
दुकान के संचालक भूपेंद्र सिंह जी बताते हैं कि 47 साल पहले उनके दादा जी श्री हरि सिंह जी ने इस कचौरी की दुकान की शुरुआत की जिसके बाद उनके पिताजी श्री शंभू सिंह जी और उनके भाई शेर सिंह जी ने इसे संभाला बदलते समय के साथ-साथ बदलती पीढ़ी ने इस काम को बखुभी संभाल रखा है.अब इस काम की बागड़ोर भूपेंद्र सिंह और इनके भाई देवेंद्र सिंह और आयुष, सुयश पंवार के हाथ में है.समय बदलता रहा पर यहां का स्वाद आज भी वहीं है.
शुद्ध एवं चटपटे मसालो से तैयार की हुआ कचौरी,समोसा,ब्रैड पकोड़ा का अपना अलग ही मजा है. साफ़-सुथरी इस दूकान पर सुबहे से ही कचौरी बनना शुरु हो जाते है. जिसका सिलसिला शाम तक ऐसे ही बरक़रार रहता है.
यदि आप इनका आनंद लेना चाहते हैं तो सब-कुछ भूलकर इनके स्वाद और खुश्बुओं में खो जाएं.आप सभी यहां आएं.और मिल-जुलकर इनका आनंद उठाएं.