जयपुर-जोबनेर रोड पर बोराज गांव में 372 वर्ष पुराने ठाकुर जी के मंदिर का शिला पूजन कार्यक्रम मुख्य अतिथि अग्र पीठाधीश्वर राघवाचार्य जी वेदांती रेवासा धाम एवं हाथोज धाम के स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज के सानिध्य में 11 लाख राम नाम मंत्र लिखी हुई चांदी के शिला रखवा कर मंदिर निर्माण का श्रीगणेश किया गया।
रेवासा धाम के पीठाधीश्वर राघवाचार्य जी महाराज एवं पलसाना महाराज ने कहा कि नए मंदिर बनाने से अच्छा है कि पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार किया जाए उनमें कई 100 वर्षों की पूजा पाठ हवन यज्ञ और संतों का तप किया हुआ होता है। उसको ही आगे बढ़ाते हुए पुराने मंदिर को नए भवन नया स्वरूप दिया जाए।
इस अवसर पर हाथोज धाम के स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि मंदिर निर्माण में दिया हुआ दान 21 पीढ़ियों का उद्धार करता है 10 पीढ़ी जो स्वर्गारोहण हो चुकी है। और 10 पीढ़ी जो आने वाली है। एवं एक पीढ़ी स्वयं जो स्वयं मंदिर के निर्माण में सेवाएं योगदान करते हैं। धन की गति तीन काम नाश भोग धनलक्ष्मी रूपा चंचला है यह एक जगह रुकती नहीं है। या तो धन का नाश होगा या रोग बीमारी पीड़ा में जाएगा या कोर्ट कचहरी में खर्च होगा। धन का सदुपयोग ऐसे सत कर्मों में लगाने से होगा। मंदिर मठ आश्रम क्षेत्र के लोगों को आध्यात्मिक सत्संग से और प्रवचन के माध्यम से भगवान से जोड़ने का कार्य करते हैं।
इस भौतिक युग में मन चित की शांति सबसे बड़ा धन है। और उसके लिए मन के भीतर मंदिर में प्रवेश करना होता है। जहां आत्मा और परमात्मा का निवास है। स्वयं से यह कार्य नहीं होता है तो किसी भी देवालय में जाकर मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन पाकर आत्मा में परमात्मा का दर्शन पाया जा सकता है। मंदिर और धर्म स्थलों से सत्संग मिलता है सत्संग से सद्गति से अज्ञानता दूर होती है ज्ञान सत मार्ग से जीवन सफल होता है।
इस अवसर पर मंदिर महंत कानदास जी महाराज एवं युवाचार्य विष्णु स्वामी ने बताया कि इस आयोजन के मुख्य अतिथि अग्र पीठाधीश्वर राघवाचार्य जी महाराज रेवासा धाम, पलसाना गोपाल मंदिर के महंत मनोहर शरण जी महाराज, नरेना दादू पीठ आचार्य गोपाल दास जी महाराज, बोराज गौशाला से बाल व्यास महाराज, अभय आश्रम प्रह्लाद दास जी महाराज, हाथोज धाम के स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज के सानिध्य में पांच विद्वान पंडितों द्वारा भूमि पूजन करा कर 11 लाख राम नाम मंत्र लिखी हुई चांदी की सिला रखवा कर मंदिर निर्माण का श्रीगणेश किया गया।