धौलपुर। घडिय़ालों की जीवन रेखा कही जाने वाली चम्बल नदी में इन दिनों घडिय़ाल के नवजातों की चहल कदमी देखी जा रही है। यहां पहली बार दुर्लभ प्रजाति के डायनासोर के हजारों की संख्या में घडिय़ाल के बच्चे जन्मे हैं। हालांकि यह प्रजाति विलुप्त प्राय हो गई है लेकिन अबकी बार चम्बल में इनकी संख्या कई गुना बढऩे से चंबल सेंचुरी के अधिकारियों व स्थानीय लोगों में खुशी लेकर आई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार माह अप्रैल से जून के मध्य तक घडिय़ाल का प्रजनन काल रहता है। मई-जून में मादा रेत में 30 से 40 सेमी का गड्ढा खोद कर 40 से लेकर 70 अंडे देती हैं। लगभग एक माह के बाद अंडों से बच्चे बाहर आते है, जिसे मदर काल करते हैं। मादा रेत हटा कर बच्चों का निकालती है और नदी में ले जाती है। इन दिनों धौलपुर रेंज में शंकरपुरा, अंडवापुरैनी, हरिगिर बाबा आदि घाटों पर घडिय़ाल अंडों से बच्चे निकल चुके हैं जो चंबल किनारे झुंडों में इनकी उछल कूद का नजारा दिखाई दे रहा है।
पर्यावण प्रेमी राजीव तोमर कहते हैं कि इस बार चंबल नदी में इनकी अच्छी संख्या होना सुखद है। जितनी तादाद में घडिय़ाल के बच्चे इस बार चंबल में नजर आ रहे हैं, वह दुर्लभ प्रजाति के घडिय़ाल की तादाद में इजाफा करने के लिये पर्याप्त कही जा सकती है।
तहलका. न्यूज़