जयपुर- बगरू विधानसभा में ग्रामीण क्षेत्र में 31 पंचायतें हैं ओर शहरी क्षेत्र में 21 नगर निगम वार्ड हैं तो बगरू खुद एक नगर पालिका भी है. बगरू विधानसभा साल 2008 में परिसीमन के बाद बनी. परिसीमन से पहले बगरू विधानसभा जयपुर की सांगानेर विधानसभा का हिस्सा थी, तो वर्तमान बगरू विधानसभा में जौहरी बाजार जो अब मालवीय नगर बन चुकी है, उसका भी कुछ हिस्सा आता था. बगरू विधानसभा जो अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है, उसमें अब तक तीन चुनाव हुए है. जिनमें राजस्थान में सरकार की तरह ही एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा के विधायक बनते हैं. खास बात यह है कि जब कांग्रेस की सरकार होती है तो बगरू में विधायक भी कांग्रेस का बनता है और जब भाजपा की सरकार होती है तो बगरू का विधायक भी भाजपा का होता है।
गंगा देवी दो चुनाव जीतीं, लेकिन इस बार कांग्रेस के अन्य प्रत्याशी दे रहे चुनौती : 2008 में परिसीमन के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस ने गंगा देवी को टिकट दिया और उन्होंने चुनाव जीता. लेकिन 2013 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने प्रहलाद रघु को टिकट दिया प्रह्लाद रघु चुनाव हार गए. ऐसे में 2018 में कांग्रेस ने गंगा देवी को टिकट दिया वह चुनाव जीत गईं, लेकिन इस बार गंगा देवी को कांग्रेस के टिकट के मामले में युवा एवं शिक्षित उम्मीदवार बलवेन्द्र सिंह से टिकट को लेकर कड़ी चुनौती मिल रही है।
हमारे संवाददाता द्वारा क्षेत्र का सर्वे करने पर लोगों का रुझान निकल कर सामने आया कि अगर कांग्रेस पार्टी वर्तमान विधायक को बदलकर नए चेहरे पर दांव खेलती है तो कांग्रेस का उम्मीदवार एकतरफा जीत हासिल कर सकता है।
बलवेन्द्र सिंह पिछले चार-पांच सालों से क्षेत्र में कड़ी मेहनत कर रहे हैं उनके साथ युवा टीम के जुड़ाव के साथ-साथ बुजुर्गों का साथ है बलविंदर सिंह ने क्षेत्र में मजबूत पेठ बना रखी है समय-समय पर क्रिकेट, कबड्डी, वालीबाल प्रतियोगिताओं का आयोजन क्षेत्र की गौशालाओं में गौ माता की सेवा के साथ मंदिरों के जीर्णोद्धार में सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
बगरू के आमजन का कहना है कि अगर कांग्रेस पार्टी ऐसे प्रत्याशी को टिकट देती है तो क्षेत्र के विकास में कोई कमी नहीं रहेगी बिना विधायक हर जरूरतमंद की मदद करने वाला व्यक्ति हमारे क्षेत्र का विधायक बने।
भाजपा में बगरू के पूर्व विधायक रहे कैलाश वर्मा, जिन्हें वसुंधरा सरकार में संसदीय सचिव भी बनाया गया था, इस चुनाव में भी उनके लिए भाजपा से टिकट की राह आसान नहीं दिख रही है. क्योंकि एक तो वह पिछला चुनाव हार गए थे और दूसरा उन्हें उन्हीं की पार्टी की जिला मंत्री कांता सोनवाल के साथ जितेंद्र लेखरा टिकट को लेकर कड़ी टक्कर दे रहे हैं कैलाश वर्मा 2013 में पहला चुनाव लगभग 46 हजार 356 वोटों से जीते जबकि इसके बाद 2018 में हुए चुनाव में वह 5343 वोटों से चुनाव हारे 2013 एवं 2018 के चुनाव की स्थिति को देखते हुए जो आकलन आया उसमें 5 साल में ही कांग्रेस ने लगभग 46 हजार की लीड को खत्म करते हुए 5343 वोटों से जीत प्राप्त की. ऐसी स्थिति में भाजपा में भी टिकट को लेकर बगरू सीट पर माथापच्ची करना लगभग तय लग रहा है।
बगरू विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है, लेकिन बगरू में एससी और एसटी के बाद सर्वाधिक मतदाता जाट हैं. ऐसे में इस सीट पर हनुमान बेनीवाल का भी दखल है और 2018 के चुनाव में भी हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोपा का प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा था. ऐसे में 2023 के चुनाव में हनुमान बेनीवाल की पार्टी भी एक अहम कड़ी साबित हो सकती है।
बगरू विधानसभा में सबसे बड़ी समस्या सीवरेज लाइन की है, जहां अब तक केवल बगरू के 10 से 20 प्रतिशत हिस्से में ही सीवरेज का काम पूरा हो सका है।बगरू विधानसभा क्षेत्र में एससी समाज के लोगों का दबदबा है. उनकी संख्या सबसे ज्यादा है।
एससी की संख्या 1 लाख के करीब है तो वहीं एसटी की संख्या 28 हजार है. अन्य जातियों की बात करें तो गुर्जर 15 हजार, राजपूत 20 हजार, ब्राह्मण 50 हजार, ओबीसी जिसमें जाट, कुमावत, सैनी एवं अन्य जातियों के120,000 हजार और मुस्लिमों की संख्या 35 हजार के लगभग है।