November 24, 2024
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जयपुर: शहर के टोंक रोड़ स्थित प्रताप नगर के सेक्टर 8 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में विराजमान आचार्य सौरभ सागर महाराज ने चातुर्मास के मंगल कलशों की स्थापना के तीसरे दिन बुधवार को उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए अपने आशीर्वचनों में कहा की ” जो अपनी इंद्रियों को कछुए की भांति सिकोड़ लेता है, कर्मों से रहित होता है, वही परमात्मा होने का अधिकारी बनता है।

परमात्मा, केवलज्ञानी, वितरागी और हितोपदेशी होता है। वह बाहरी ज्ञान के बल से नही अंतरंग से प्रस्फुटित ज्ञान के माध्यम से संसार को दिव्य संदेश देते है। जो परमात्मा होकर मुख से कथन करता है, उसके अन्दर स्वार्थ होता है परिचय बनाने की भावना होती है वह किसी व्यक्ति सम्प्रदाय या मानव विशेष का उपदेश देते है, समष्टि के प्राणी को नही। जो परमात्मा होकर संपूर्ण शरीर से दिव्य ध्वनि के माध्यम से उपदेश देते है, वह समष्टि के लिए निर्दोष आत्महित का उपदेश देते है।

आचार्य श्री ने कहा कि – परमात्मा संसार की सारी वस्तुऐ देखकर, जानकर भी पाप से लिप्त नहीं होते और मनुष्य एक वस्तु को देखकर राग से लिप्त हो जाता है और व्यर्थ की कल्पना करके पापाश्रव करता है।

रागी जीव संसार का सृजन करता है, वितरागी जीव स्वयं के संसार का विसर्जन करता है, परम वितरागी के ज्ञान में संसार दर्पण के समान स्पष्ट झलकता है। जिस प्रकार दर्पण से सभी वस्तुऐ झलकती है पर दर्पण सभी वस्तुओं से परे होता है उसी प्रकार परमात्मा भी संसार की समस्त वस्तुओं को देखते व जानते है पर उससे अलिप्त रहते है, परे रहते है। वे सर्वज्ञ होते हुए भी आत्मज्ञ होते है।

श्री पुष्प वर्षायोग कमेटी मंत्री महेंद्र जैन पचाला वालों ने बताया की आचार्य सौरभ सागर महाराज की मंगल प्रवचनों की सभा प्रतिदिन संत भवन में प्रातः 8.30 बजे से निरुत्तर संचालित होगी। इससे पूर्व प्रातः 6.30 बजे से आचार्य श्री के सानिध्य में भगवान शांतिनाथ के कालशाभिषेक एवं शांतिधारा का आयोजन होगा और शाम 7 बजे से श्रीजी की आरती, आचार्य श्री की आरती के पश्चात आनंद यात्रा का आयोजन होगा।

तहलका डॉट न्यूज