बिजयनगर:(अनील सैन)
आचार्य श्री हीराचंद जी महाराज साहब के आज्ञानुवर्ती मधुर व्याख्यानी श्री गौतम मुनि जी महाराज साहब एवं श्री अविनाश मुनि जी महाराज साहब ने आज प्रवचन महावीर भवन में फरमाया। सेवाभावी अविनाश मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया कि वस्तु का स्वभाव ही धर्म है जैसे जल का स्वभाव शीतलता है, अग्नि का स्वभाव गरम है, करेले का स्वभाव कड़ापन है।
आत्मा का स्वभाव धर्म है जिस प्रकार वस्तु अपना स्वभाव नहीं छोड़ती उसी प्रकार व्यक्ति को अपने आत्मा के स्वभाव को नहीं छोड़ना चाहिए।
तत्पश्चात श्रद्धेय श्री गौतम मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया एक क्षेत्र में एक ही तीर्थंकर मिलते हैं। श्रावक का दूसरा नाम श्रमणोपासक होता है। परायों को जानने वाला अज्ञानी और स्वयं को जानने वाला ज्ञानि होता है। गुरुदेव ने फरमाया की उपासना 3 तरह की होती है पहली वाचिक दूसरी मानसिक और तीसरी कायिक ।उपासना करने का मतलब होता है हलूकर्मी बनना पंच महाव्रत धारी संतों के पास गुरुजनों के पास बैठना कायिक उपासना है ।उनके उपदेश को तहती कहकर स्वीकार करना वाचिक उपासना है ।उपदेश के प्रति अनुराग रखना मानसिक उपासना है।
गुरुदेव ने फरमाया कि 2 तारीख को चौदस है, यह चतुर्मासिक चौमासी है।इस दिन से चातुर्मास शुरू हो रहा है अतः आप सभी आधिक से अधिक ज्ञान दर्शन एवं चरित्र की आराधना करे । साधू संतों से तत्व चर्चा करके नियमित दर्शन करके एवम वर्तो को ग्रहण करके आप ज्ञान दर्शन एवम चारित्र की आराधना कर सकते है।