ग्राम सरूंड में पहाड़ी पर स्थित है महाभारत कालीन सरूंड माता का अलौकिक मंदिर
नारेहडा:(संजय कुमार जोशी) वैसे तो पूरा राजस्थान लोक देवी-देवताओं के मंदिर व स्थानों से भरा पड़ा है लेकिन कोटपूतली को नीमकाथाना से जोड़ने वाले डाबला रोड स्थित ग्राम सरूंड में बना श्री सरूंड माता का मंदिर अपने आप में विशेष महत्व रखता है। प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। राजस्थान समेत देश के कोने-कोने से हजारों की तादाद में श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं। महाभारत कालीन यह मंदिर ग्राम सरूंड में एक पहाड़ी पर स्थित है। जिस पर पहुंचने के लिए 284 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। कहा जाता है कि मंदिर में मां की मूर्ति पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान स्थापित की थी। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मंदिर में स्थापित चिलाय देवी मां की मूर्ति पांडवों की कुल देवी का ही रूप है।
एक गुफा में स्थापित है मूर्ति-
किंवदंती है कि माता की मूर्ति के मदिरा का भोग लगने की बात सुनकर 16वीं सदी में मुगल बादशाह अकबर ऊंटों पर मदिरा का जखीरा लेकर आया था। लेकिन हर बार मंदिर की आधी चढ़ाई में ही ऊंटों पर रखी मदिरा खाली हो जाती थी। ऐसा देख यहां मुगल बादशाह अकबर को भी झुकना पड़ा था। इसके बाद अकबर ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। मूर्ति पहाड़ी पर एक गुफा में स्थित है। जिस तक पहुंचने के लिए सात द्वार से होकर गुजरना पड़ता है। इससे पहले यहां सिर्फ एक द्वार हुआ करता था। जबकि शेष छह द्वार मुगल कालीन हैं। कहा जाता है कि ये द्वार अकबर ने ही बनवाए थे। औरंगजेब के समय भी यह सिलसिला चलता रहा।
मार्ग में माता के है पदचिह्न-
मान्यता है कि रात्रि के समय में स्वयं सिंह पर सवार होकर माता रानी भ्रमण करती है। मंदिर पर चढ़ाई के दौरान आधे रास्ते में माता के पदचिह्न आते हैं जबकि मंदिर के परिक्रमा मार्ग में पुजारियों के अनुसार 52 भैंरू, 56 कलवा, 64 योगिनी, 9 नृसिंह व 5 पीर क्षेत्रपाल के रूप में स्थित है। इसके अलावा 500 वर्ष पुरानी बावड़ी, छतरी एवं गुफा के बीचों-बीच हनुमान जी का भी ऐतिहासिक मंदिर स्थित है।
भरता है तीन दिवसीय मेला-
यहां नवरात्र की सप्तमी से नवमी तक तीन दिवसीय मेला भरता है। साथ ही सप्तमी की रात्रि को जागरण भी होता है। इसके अलावा प्रत्येक माह की शुक्ल अष्टमी को भी जागरण का आयोजन होता है। मंदिर का वार्षिकोत्सव वैशाख शुक्ल षष्टी से नवमी तक लगातार चार दिन तक प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। विभिन्न समाजों के लोग मां सरूंड की पूजा कुलदेवी के रूप में करते हैं।