November 24, 2024
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भिनाय (शंकर लाल बैरवा)

रमाबाई अंबेडकर (7 फरवरी, 1898 – 27 मई, 1935)
डॉ. आंबेडकर अपनी जीवन-संगिनी रमाबाई आंबेडकर को प्यार से रामू कहकर पुकारते थे और उनकी रामू उन्हें साहेब कहकर बुलाती थीं। दोनों ने 27 वर्षों तक जीवन के सुख-दुख सहे। दुख ज्यादा, सुख बहुत कम। दोनों की शादी 1908 में उस समय हुई थी, जब डॉ. आंबेडकर की उम्र 17 वर्ष और रमाबाई की उम्र 9 वर्ष थी। रमाबाई का मायके का नाम रामीबाई था। शादी के बाद उनका नाम रमाबाई पड़ा। आंबेडकर के अनुयायी माता रमाबाई को ‘रमाई’ कहते हैं।परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब अम्बेडकर जी को महापुरुष,युग प्रवर्तक बनाने वाली,परमपूज्यनीय त्याग समर्पण महान शख्सियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल महानायिका राष्ट्रमाता रमाई अंबेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि !!

परमपूज्यनीय त्याग समर्पण महान शख्सियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल माता रमाई अंबेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस पर उनके संघर्षो,त्याग को शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि !!

आवो जाने ऐसी नारी शक्ति को जिनके त्याग समर्पण समाज के प्रति निष्ठा की बदौलत बहुजन समाज, सर्व समाज की नारी शक्ति को भारत वर्ष में सम्मान से जीने का अधिकार मिला वो है परमपूज्यनीय त्याग भावना की मूर्ति माता रमाई अंबेडकर जी..

परमपूज्य बोधिसत्व बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को विश्वविख्यात महापुरुष बनाने में रमाई का ही साथ था ! साथियों आज हमारी महिलाओ (चाहे वे किसी भी धर्म या जाति समुदाय से हो) को माता रमाबाई अंबेडकर जी पर गर्व होना चाहिए कि किन परिस्थितियों में उन्होंने बाबा साहेब का मनोबल बढ़ाये रखा और उनके हर फैसले में उनका साथ देती रही। खुद अपना जीवन घोर कष्ट में बिताया और बाबा साहेब की मदद करती रही !

प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उसकी जीवनसंगिनी का बहुत बड़ा हाथ होता है जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद,वह व्यक्ति,महापुरुष ही नहीं बन पाता ! आई साहेब रमाबाई अंबेडकर इसी तरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थी !

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