November 24, 2024
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जयपुर:- हाथोज धाम के स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य जी महाराज की जयंती पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत की पवित्र भूमि ने कई संत महात्माओं को जन्म दिया है। जिन्होंने अपने अच्छे आचार विचार और कर्मों के द्वारा जीवन को सफल बनाया और कई सालों तक अन्य लोगों को भी धर्म से जोड़ने का काम किया ऐसे एक महान संत हुए श्री रामानंदाचार्य जी महाराज।

हाथोज धाम के स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने कहा कि जिस प्रकार पूर्व संतो ने आचार्यों ने देश को जोड़ने का काम किया आज के इस परिपेक्ष में भी सभी संतो को, मठों को, आश्रमों को, गुरुकुल की वेद पाठशालाओं और वैष्णव जन को गौ सेवा और हिंदू संस्कृति का उत्थान बढ़ाने का कार्य करना चाहिए यही संतो को सच्ची श्रद्धा सुमन नमन होगा।स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने बताया कि रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य जी ने हिंदू धर्म को संगठित और व्यवस्थित करने के अथक प्रयास किए उन्होंने वैष्णव संप्रदाय को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव जन को उनका आत्मसम्मान दिलाया।

रामानंद वैष्णव भक्ति धारा के महान संत थे सोचो जिनके शिष्य संत कबीर और रविदास जैसे संत रहे हो तो वह कितने महान रहे होंगे। मुगल बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिंदू जनता और साधुओं पर कई तरह की पाबंदी लगा रखी थी। हिंदुओं पर बेवजह के कई नियम तथा बंधन थोपें जाते थे। इन सब से छुटकारा दिलाने के लिए रामानंदाचार्य ने बादशाह को योग बल के माध्यम से मजबूर कर दिया अंततः बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंद कर उन्हें अपने धार्मिक उत्सव को मनाने तथा हिंदू तरीके से रहने की छूट प्रदान की।

रामानुजाचार्य का जन्म माघ माह की सप्तमी संवत 1356 अर्थात इसवी सन 1300 को कान्यकुब्ज ब्राह्मण के कुल में जन्मे श्री रामानंद जी के पिता का नाम पुण्य शर्मा तथा माता का नाम सुशीला देवी था। वशिष्ठ गोत्र कुल के होने के कारण वाराणसी के कुल पुरोहित ने मान्यता अनुसार जन्म के 3 वर्ष तक उन्हें घर से बाहर नहीं निकालने और 1 बरस तक आईना नहीं दिखाने को कहा था। उनके प्रमुख शिष्यों में संत अंतानंद, संत सुखानंद, सुरसुरानंद, नरहरीयानंद, योगानंद, पीपानंद, संत कबीर दास, संत सेजानहावी, संत धन्ना, संत रविदास, पद्मावती और संत सुरसुरी प्रमुख रहे।सम्मत 1532 अर्थात 1476 में आध जगतगुरु रामानंदाचार्य जी ने अपनी देह छोड़ दी। उनके देह त्याग के बाद से वैष्णव पंथियों में जगद्गुरु रामानंदाचार्य पद पर रामानंदाचार्य की पदवी को आसीन किया जानने लगा। जैसे शंकराचार्य एक उपाधि है उसी तरह रामानंदाचार्य की गद्दी पर बैठने वाले को इसी उपाधि से विभूषित किया जाता है। दक्षिण भारत के लिए श्री क्षेत्र नाणिज को वैष्णव पीठ घोषित कर इसका नाम जगद्गुरु “रामानंदाचार्य पीठ नाणिजधाम” रखा गया है।

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