November 24, 2024
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राजस्थान भील समाज विकास समिति शाखा सहाड़ा के तत्वाधान में सोमवार को उल्लाई चैराहे पर भील राणा पुन्जा जयन्ती मनाई गई, जिसमें समाज सेवी गेहरूलाल भील ने बताया कि महाराणा पूंजा, अरावली पर्वतमाला में स्थित भोमट क्षेत्र के राजा थे, उन्होंने मजबूत सेना का गठन कर रखा था, उनकी शक्ति को देखते हुए ही, मेवाड़ के शासक राणा प्रताप और मुगल शासक अकबर के संरक्षक बेरम खां, महाराणा के पास सहायता लेने पहुंचे। भीलो की सहायता से ही हल्दीघाटी युद्ध 24 वर्षों तक चला। महाराणा पूंजा योगदान के फलस्वरूप ही मेवाड़ चिन्ह में उन्हें अंकित किया गया है, साथ साथ महाराणा पूंजा के नाम से पुरस्कार वितरित किया जाता है और कॉलेज और विद्यालयों की स्थापना की गई है।महाराणा पूंजा का जन्म 5 अक्टूबर पानरवा के मुखिया दूदा भील परिवार में हुआ था इनके दादा राणा हरपाल थे। उनकी माता का नाम केहरी बाई था, उनके पिता का देहांत होने के पश्चात 15 वर्ष की अल्पायु में उन्हें पानरवा का मुखिया बना दिया गया। यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वे जल्दी ही भोमट के राजा’ बन गए।श्यामलाल भील ने बताया कि हल्दीघाटी का युद्ध 1576 ई. में मेवाड़ में मुगलों का संकट उभरा। मेवाड़ तक पहुंचने के लिए मुगलों को महाराणा पूंजा के क्षेत्र से होकर जाना था लेकिन महाराणा के राजकीय क्षेत्र से होकर जाना आसान नहीं था, इसलिए तत्कालीन समय के सबसे ताकतवर राजा के नितिकार एवं संरक्षक बैरम खां और मेवाड़ के महाराणा प्रताप दोनों ही भोमट के महाराणा पूंजा के पास सहयोग लेने पहुंचे। मुगलों ने महाराणा पूंजा को धन-दौलत देकर मुगल सम्राट अकबर का साथ देने को कहा तो वही महाराणा प्रताप ने बप्पा रावल की तलवार महाराणा पूंजा के समक्ष रखते हुए देशभक्ति की राह पर चलते हुए मेवाड़ का साथ देने को कहा।इस संकट के काल में महाराणा प्रताप ने महाराणा पूंजा का सहयोग मांगा। महाराणा पूंजा ने मुगलों से मुकाबला करने के लिए मेवाड़ के साथ खड़े रहने का निर्णय किया। महाराणा को वचन दिया कि महाराणा पूंजा और सभी भील भाई मेवाड़ की रक्षा करने को तत्पर है। इस घोषणा के लिए महाराणा ने महाराणा पूंजा को गले लगाया और अपना भाई कहा। 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध में राणा ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए झोंक दी। हल्दीघाटी युद्ध में भीलो के महाराणा पूंजा ने अहम भूमिका निभाई, हल्दीघाटी युद्ध के अनिर्णय रहने में महाराणा पूंजा का अहम योगदान रहा। इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप महाराणा पूंजा के साथ रहे।महाराणा भील के इस युगों-युगों तक याद रखने योग्य शौर्य के संदर्भ में ही मेवाड़ के राजचिन्ह में भील प्रतीक अपनाया गया है।साथ ही राणा पुंजा ग्राउंड में कबड्डी प्रतियोगिता रखी गई जिसमें 12 टीमों ने भाग लिया, जिसमें विजेता सालेरा व उपविजेता सुरत सिंह जी का खेड़ा रहे। एवं राजस्थान भील समाज विकास समिति सहाडा़ की नई कार्यकारिणी का गठन किया जिसमें अम्बालाल भील लाखोला को ब्लाॅक अध्यक्ष पद पर निर्विरोध तथा आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष देवीलाल भील छापरी को मनोनीत किया गया। उक्त बैठक में सरपंच उल्लाई, माधवलाल भील, नन्दलाल भील, रामचन्द्र भील, कैलाशचन्द, सम्पतलाल भील, नारायणलाल भील, मुलचन्द, सहित 50 लोग उपस्थित थे।

गंगापुर ( दिनेश चौहान )