जयपुर-हाथोज धाम के स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने सरकार के द्वारा मृत्यु भोज पर पाबंदी को लेकर कहा कि मृत्यु के उपरांत गांव में या शहर में बड़े स्तर पर भंडारा आदि का आयोजन करने के खिलाफ हूं। लेकिन अपने पूर्वजों माता- पिता की मृत्यु उपरांत किए जाने वाले क्रिया श्राद्ध कहलाती है। जिसमें मृत व्यक्ति के परिवार द्वारा अपने पूर्वजों की याद में श्रद्धा पूर्वक किया जाने वाला दान भी सम्मिलित हैं। मृत्यु के बाद ब्राह्मण भोजन का विधान शास्त्रों में है। लेकिन सरकार ने मृत्यु भोज एवं श्राद्ध कर्म को दोनों को एक ही चीज मान कर इस पर रोक लगा दी है।श्राद्ध की प्रक्रिया शास्त्र सम्मत है जिसमें ब्राह्मण भोज का उल्लेख है। जिसमें किसी भी व्यक्ति पर कोई दबाव नहीं डाला जाता है। श्रद्धा पूर्वक किया जाने वाला कार्य श्राद्ध कहलाता हैं। श्राद्ध एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। हमारे शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान राम ने वनवास के समय में महाराज दशरथ का मृत्यु उपरांत वन में पिंडदान व श्राद्ध कर्म किया जिसको महाराज दशरथ ने स्वयं आकर ग्रहण किया।
लेकिन सरकार का ध्यान शादी विवाह और पार्टियों की ओर नहीं जाता जहां पर लोग अपनी औकात से ज्यादा खर्च कर अपनी शान ओ शौकत दिखाते हैं। सरकार को अपव्यय कि इतनी चिंता है। शादी विवाह में होने वाले अनावश्यक खर्च में कटौती की बात क्यों नहीं करती है। क्यों शादी विवाह में लजीज भोजन बनाने की होड़ लगी रहती है।
मृत प्राणी के पीछे किया गया भोजन शास्त्रों में अन्नदान के रूप में माना गया है। जिसे सभी धर्म एकमत से स्वीकार करते हैं।
हाथोज धाम के स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने बताया कि भारतीय वैदिक परंपरा के अनुसार मृतक के घर पर आज भी लोग कपड़े आदि लेकर जाते हैं। इसका दायरा पहले और भी व्यापक था।
परिचित रिश्तेदार अनाज राशन, दूध, दही, मिष्ठान, लेकर मृतक के घर पहुंचते थे।
उसी खाद्यान्न से भोजन सामग्री बनाकर ब्राह्मणों को परोसा जाता था। वर्तमान में जो मृत्यु भोज के नाम पर चल रहा है। वास्तव में पितृ श्राद्ध (ब्राह्मण भोज) का विकृत रूप है। जिसमें सुधार होना चाहिए। परंतु बंद नहीं करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध के द्वारा ही पितरों को भोजन मिलता है। विरोध करने वालों ने शास्त्र नहीं पढ़ा है।
समय अनुरूप इसमें कुछ सुधार होना चाहिए मृत्यु भोज का दायरा तय होना चाहिए मृत्यु उपरांत भंडारा आदि का आयोजन के तो मैं भी खिलाफ हूं। लेकिन तीन ब्राह्मण भोजन और श्राद्ध श्रद्धा पूर्वक किया जाना चाहिए।